पतंग पर कविता – मनोज श्रीवास्तव
मत लिखो, कविता पतंग पर
कविता उड़ने लगेगी,
कविता में रहते लोग
अचानक घटित आश्चर्य से
डर-सहम जाएंगे
मत बनाओ, कविता को
इतनी शोख और आज़ाद
कि वह उड़कर इतनी दूर चली जाए
हो सकता है
हमें भूल ही जाए
और हम अपना मुंह देखते रह जाएं
उन दर्पणों में
जो हमें बदसूरत बना देते हैं
हमें खुद से बहुत दूर ले जाते हैं
हम अपने से लगते हैं
जब देखते हैं
अपना प्रतिबिम्ब कविता में,
हम अपनों के पास आते हैं
जब देखते हैं
उनका अक्स कविता में
सो, मत लादो पतंग पर
कविता का दुर्वह बोझ,
इसमें समाया आदमी
अपने लफड़ों-झमेलों के साथ
और उसके समाजों के जंगल
जो विस्तारित हैं
पृथ्वी के कोने-कोने,
बेघर और निराश्रित हो जाएगा
इसलिए, कविता का भारी जिस्म
तोड़ देगा पतंगों की कमर,
तब, कविता गिरकर ज़ख़्मी हो सकती है
और उसमें समाया संसार
चकनाचूर हो सकता है |
– मनोज श्रीवास्तव
ઉત્તરાયણ આવે એટલે મોટાભાગના કવિઓ પતંગ વિશે કવિતા કરવું એ પોતાનું પરમ કર્તવ્ય છે એમ માનીને કવિતા કરવા મંડે છે. એવા જોડકણાંઓની ભીડમાં ક્યાંક આવી મજાની કવિતા હાથ ચડી જાય તો ભયો ભયો !
લયસ્તરો તરફથી સહુ વચકમિત્રોને મકરસંક્રાંતિની હાર્દિક શુભકામનાઓ…