સેંકડો અડચણ વટાવી પહોંચ્યો છું તારા સુધી,
જાત પણ વચ્ચે નડી તો જાત ઓળંગી ગયો.
વિવેક ટેલર

हमन है इश्क मस्ताना – कबीर

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?

खलक सब नाम अनपे को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?

न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?

कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?

– कबीर

કબીરસાહેબની લાક્ષણિકતા પ્રમાણે સરળ શબ્દોમાં અદ્વૈતને મૂર્તિમંત કર્યું છે….

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