પુકારો ગમે તે સ્વરે, હું મળીશ જ
સમયના કોઇ પણ થરે હું મળીશ જ
છતાં યાદ આવે તો કેદાર ગાજો
તરત આવીને ભીતરે હું મળીશ જ
-રાજેન્દ્ર શુક્લ

कुछ त्रिपदियाँ – मिलिन्द गढ़वी

अक्सर दिल को समझाया है
झील में पत्थर मत फेंका कर
चाँद के सिर पे चोट लगेगी|

इस तनहाई से तंग आकर
जाने मैं क्या कर जाऊंगा
गालिब ने ग़ज़ले कह दी थी |

अपने आप से लड़ते लड़ते
कुछ लम्हों ने जान गँवा दी
बाकी सारे comma में है |

ताजा बर्फ के मौसम रखकर
मैंने एक पिटारी भेजी
आह! वो तुमने धूप मेँ खोली |

रात नहीं कटती है वरना
दिन तो कितने काट लिए हैं
तेरी यादों की कैची से |

चाँद की जेब से चोरी कर के
मैं कुछ किरनें ले आया हूँ
काश अमावस में काम आए |

मैंने इक अधमरी उदासी को
कितनी मुश्किल से जिंदगी दी थी
तुम हो की ‘वाह वाह’ करते हो |

एक कोने मेँ पड़ा है सूरज
और सवेरा शहर से गायब है
रात कुछ नागवार गुजरी है |

– मिलिन्द गढ़वी

ગુજરાતી કવિ મિલિન્દની કલમે કેટલીક હિંદી ત્રિપદીઓ. અવર ભાષા પર કવિની હથોટી તો અહીં સાફ દેખાય જ છે, પણ જે કલ્પનો-રૂપકો કવિએ અહીં પ્રયોજ્યા છે એની તાજગી તો કંઈક અલગ જ છે. આટલા Fresh metaphors અને આવી સશક્ત બાની આપણે બહુ ભાગ્યે જ જોઈએ છીએ. દરેક ત્રિપદી આરામથી મમળાવજો… જેમાંથી આ ત્રિપદીઓ લીધી છે એ સંગ્રહ ‘નન્હે આંસૂ’ આખો જ અદભુત થયો છે…

8 Comments »

  1. Kajal kanjiya said,

    October 8, 2021 @ 2:02 AM

    ખૂબ જ સ….રસ

  2. saryu parikh said,

    October 8, 2021 @ 9:04 AM

    एक कोने मेँ पड़ा है सूरज
    और सवेरा शहर से गायब है
    रात कुछ नागवार गुजरी है |
    વાહ્!!
    સરયૂ

  3. Naresh said,

    October 8, 2021 @ 9:53 AM

    Excellent Tripadis. Thanks.
    What is the meaning of the word नागवार in
    the last Tripadi ?

  4. Lalit Trivedi said,

    October 8, 2021 @ 10:10 AM

    વાહ વાહ

  5. pragnajuvyas said,

    October 8, 2021 @ 10:11 AM

    रात नहीं कटती है वरना
    दिन तो कितने काट लिए हैं
    तेरी यादों की कैची से |
    एक कोने मेँ पड़ा है सूरज
    और सवेरा शहर से गायब है
    रात कुछ नागवार गुजरी है |
    मिलिन्द गढ़वी
    चार चाँद लगा दी।
    धन्यवाद

  6. Poonam said,

    October 9, 2021 @ 12:34 AM

    चाँद की जेब से चोरी कर के
    मैं कुछ किरनें ले आया हूँ
    काश अमावस में काम आए |
    – मिलिन्द गढ़वी – Waah ! Re chori…

  7. Sherlyn said,

    October 25, 2021 @ 10:25 AM

    मुझे दूसरे के दुख से दुखी होने की चेतना प्राप्त हुई है। प्रेम केवल निस्वार्थ नही होता है. जब आप प्रेम किए जाते हैं तो चाहने वालों का बहुत ख़्याल रखना होता है। जैसे हम बहुत सावधानी से प्याली में गर्म चाय उड़ेलते हैं, उसी तरह से चाहने वालों का ख़्याल रखना होता है। होठों से हल्की हवा उनके गर्म तासीर को मुलायम करती जाए, ध्यान रखना होता है। ऐसे ही एक कवि का प्यार मुझे मिला। गुजरात के मिलिंद गढवी। बहुत मेहनत से लिखी और छपी उनकी कविता संसार ने मुझे प्रभावित किया है। अहसास-ए-कमतरी से भर गया हूं। काश समीक्षक की जगह मैं गढवी ही होता है यानि कवि ही होता। कितनी महंगी और सुंदर छपाई है। ईश्वर ऐसे धनाढ्य कवियों को रचना की प्रेरणा दे और मुझे प्रकाशक बनने की क्षमता। पेश है उनकी कुछ महान कविताएं।

    कविता नंबर 43

    तुमको मालूम कहां होगा मैं
    एक statue की तरह ज़िंदा हूं
    तुम तो बस भूल गई ‘move’ कहना।

    कविता नंबर 49

    कितने रिश्तों का NPA जाना
    कितने आंसू भी हो गए write off
    ज़िंदगी loss में रही इस साल ।

    कविता नंबर -51

    रात नहीं कटती है वरना
    दिन को कितने काट दिए हैं
    तेरी यादों की कैंची से ।

    कविता नंबर 61

    उने कुछ देर पोंछकर आंसू
    Tissue को फ़ेंक दिया dustbin में
    दिल भी tissue की तरह होते हैं।

    कविता नंबर 65

    कभी कभी बैठे बैठे ही
    दूर निकल जाता हूं घर से
    पूरा लौट नहीं पाता हूं।

    मिलिन्द की रचना अंग्रेज़ी के प्रति उदार है। उनकी हिन्दी इतनी बड़ी है कि अंग्रेज़ी कब किसी कोने में आकर बैठी मिल जाए पता नहीं चलता। जैसे आपको पता नहीं चलता कि रवीश कुमार होने की गुमशुदगी क्या है।

    ईश्वर ने मुझे घीरज पर्याप्त दिया है। देना चाहिए था ट्रक और टेंपो ताकि ऐसी रचनाओं को जन जन तक पहुंचा पाता।

    राजकोट के इस कवि को पदमश्री प्राप्त हो। चाहूंगा कि ज्ञानपीठ भी मिले। वो सब मिले जो सबको मिलता है। इस दुनिया से कोई ख़ाली न जाए। मिलिन्द भाई की कविता मेरे संपादक सत्यानंद के गमलबानी में फूल की तरह खिले, ऐसी दुआ है।

    मैं अपनी सहनशीलता के इम्तहान में आज पास हो गया हूं। फेल होने की आदत नहीं मुझे। ये पंक्ति मेरी है अगर इसमें से कोई बड़ा संदर्भ निकलता है तो। वर्ना प्रो वसीम बरेलवी, शमीम अब्बास ने जो प्रस्तावना में इस कवि से उम्मीद जताई है, उसे पढ़कर मेरा यकीन गहरा हुआ है।

    हिन्दी के सारे कवि अगर स्पेनिश में पलायन कर जाएंगे तब भी राजकोट के इस कवि में हिन्दी की कविता ज़िंदा रहेगी। इस महीने गुजरात से यह दूसरा प्यार आया है। राजपुरा आम और मिलिन्द गढवी की नन्हे आंसू।

  8. Sherlyn said,

    October 25, 2021 @ 10:26 AM

    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1164064260458386&id=618840728314078

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