(ये साल अच्छा है) – पारुल खख्खर
उसने पूछा कि हाल अच्छा है?
हम ये बोले, सवाल अच्छा है|
उस बरहमन को ढूंढ के लाओ,
कह गया था ये साल अच्छा है|
हो के बेज़ार मुझसे बोल गया,
तुझसे तेरा मलाल अच्छा है|
खुद को हर बात की सज़ा देना,
आपका ये कमाल अच्छा है|
‘भूल जाउंगी’ जब कहा मैने,
हंस के बोले खयाल अच्छा है|
– पारुल खख्खर
આપણી પાસે આપણું નવું કશું નથી. કહ્યું છે ને કે, व्यासोच्छिष्टं जगत् सर्वम्| આપણી વાણી-ભાષા-વિચાર આ બધું જન્મ પછી સંસાર તરફથી મળેલ સંસ્કારથી વિશેષ કંઈ નથી. સાચો અને સારો કવિ પૂર્વસૂરિઓના ખભા ઉપર ઊભો રહીને પોતાની રીતે અલગ સંસારદર્શન કરે છે. પ્રસ્તુત ગઝલ જુઓ, ગાલિબની ખ્યાતનામ ગઝલના શેર, ‘देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़, इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है,’નું સ્મરણ કરીને કવયિત્રી કેવો મજાનો શેર આપણને આપે છે! ગાલિબના શેરમાં આશાના સ્વાંગમાં નિરાશા અને કટાક્ષ છૂપાયેલ નજરે ચડે છે, જ્યારે પારુલ ખખ્ખરના શેરમાં આશાભંગના સ્વીકાર પછીનો તકાજો છે… સરવાળે આખી ગઝલ આસ્વાદ્ય થઈ છે.
ધવલ said,
August 4, 2021 @ 11:09 AM
સરસ !
क़तील शिफ़ाई ના શેરની વધરે નજીકઃ
जिस बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
उस को दफ़नाओ मिरे हाथ की रेखाओं में
pragnajuvyas said,
August 4, 2021 @ 11:46 AM
પારુલ ખખ્ખરની ગઝલ अच्छा है
ડૉ વિવેકનો આસ્વાદ अच्छा है
યાદ આવે
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहरની अच्छा है
जिगर का दर्द जिगर में रहे तो अच्छा है
जो बात घर की हो घर में रहे तो अच्छा है
मआल-ए-कार से डरना तो बुज़दिली है मगर
मआल-ए-कार नज़र में रहे तो अच्छा है
जो गिर सके न कभी आँख से गुहर बन कर
वो अश्क दीदा-ए-तर में रहे तो अच्छा है
रवाँ-दवाँ है इधर उम्र जानिब-ए-मंज़िल
धर ये जाम सफ़र में रहे तो अच्छा है
परे करो न अभी गेसुओं को आरिज़ से
ये शाम क़ुर्ब-ए-सहर में रहे तो अच्छा है
अजीब शय है हक़ीक़त में सोज़-ए-महरूमी
फ़ुग़ाँ तलाश-ए-असर में रहे तो अच्छा है
जले जले न जले आशियाँ मगर ये ‘सहर’
निगाह-ए-बर्क़-ओ-शरर में रहे तो अच्छा है
હિતેશકુમાર 'તપસ્વી' said,
August 4, 2021 @ 1:16 PM
સરસ