હાસ્યમેવ જયતે : ૦૩ : तू डाकुओं का बाप है – हुल्लड़ मुरादाबादी
क्या बताएं आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए
भूख, महंगाई, ग़रीबी इश्क़ मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझपर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान थे
रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए
हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए
कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे
और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे
हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े
चार कविता, पांच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े
रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे
एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे
कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते
सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते
अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है
– हुल्लड़ मुरादाबादी
હાસ્ય અને વ્યંગનો સુંદર સંગમ….
મને આવી કવિતાઓની ગુજરાતીમાં સખત ખોટ સાલે છે…. ગુજરાતીના ટેલેન્ટેડ કવિઓને આગ્રહભરી વિનંતી કે આ કાવ્યપ્રકાર ઉપર ધ્યાન આપો પ્લીઝ – આમાં સર્જનનો આનંદ તો છે જ છે, સાથે પ્રચંડ લોકપ્રિયતા અને આમદાનીનો પણ સુભગ સંગમ છે….
વ્યંગ વિષે કાકા હાથરસી શું કહે છે તે સાંભળીએ :-
व्यंग्य एक नश्तर है
ऐसा नश्तर, जो समाज के सड़े-गले अंगों की
शल्यक्रिया करता है
और उसे फिर से स्वस्थ बनाने में सहयोग भी।
काका हाथरसी यदि सरल हास्यकवि हैं
तो उन्होंने व्यंग्य के तीखे बाण भी चलाए हैं।
उनकी कलम का कमाल कार से बेकार तक
शिष्टाचार से भ्रष्टाचार तक
विद्वान से गँवार तक
फ़ैशन से राशन तक
परिवार से नियोजन तक
रिश्वत से त्याग तक
और कमाई से महँगाई तक
सर्वत्र देखने को मिलता है।
– કાકા હાથરસી
Prahladbhai Prajapati said,
December 7, 2020 @ 8:52 AM
બહુજ સુન્દર
pragnajuvyas said,
December 7, 2020 @ 11:23 AM
अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है
हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है–
बहुत खूब
स्व. हुल्लड़ मुरादाबादी ने अपनी रचनाओं में हर छोटी सी बात को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। ‘तथाकथित भगवानों के नाम-‘ जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान, काका हाथरसी पुरस्कार से नवाजा गया था। कविताओं के अलावा उनके दोहे सुनकर श्रोता हंसते हंसते लोटपोट होने लगते। हुल्लड़ के कुछ ऐसे ही दोहों पर नजर डालिए-
कर्जा देता मित्र को वो मूरख कहलाय
महामूर्ख वो यार है
जो पैसे लौटाय
पुलिस पर व्यंग्य करते हुए लिखा है-
बिना जुर्म के पिटेगा
समझाया था तोय
पंगा लेकर पुलिस से
साबित बचा न कोय
क्या बताएं आपसे हम हाथ मलते रह गए
गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए
भूख, महंगाई, गरीबी इश्क़ मुझसे कर रहीं थीं
एक होती तो निभाता, तीनों मुझ पर मर रही थीं
मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे
मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान थे
चांद औरों पर मरेगा क्या करेगी चांदनी
प्यार में पंगा करेगा क्या करेगी चांदनी
चांद से हैं खूबसूरत भूख में दो रोटियां
कोई बच्चा जब मरेगा क्या करेगी चांदनी
डिग्रियां हैं बैग में पर जेब में पैसे नहीं
नौजवां फ़ांके करेगा क्या करेगी चांदनी
जो बचा था खून वो तो सब सियासत पी गई
खुदकुशी खटमल करेगा क्या करेगी चांदनी
अभी तो मैं जवान हूँ
ज़िन्दगी़ में मिल गया कुर्सियों का प्यार है
अब तो पाँच साल तक बहार ही बहार है
कब्र में है पाँव पर
फिर भी पहलवान हूँ
अभी तो मैं जवान हूँ।
मुझसे पहली-सी मुहब्बत
सोयी है तक़दीर ही जब पीकर के भांग
महँगाई की मार से टूट गई है टाँग
तुझे फोन अब नहीं करूँगा
पी.सी.ओ. से हांगकांग
मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न माँग।
–
काका हाथरसी -(प्रभुलाल गर्ग) हिंदी हास्य कवि की शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही, आज भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं. प्रस्तुत
ऐसा नश्तर, जो समाज के सड़े-गले अंगों की
शल्यक्रिया करता है
अफलातुन व्यंग्य !
વિવેક said,
December 8, 2020 @ 7:06 AM
મજાનું કાવ્ય…
Dhaval Shah said,
December 8, 2020 @ 9:47 PM
चार कविता, पांच मुक्तक, गीत दस हमने पढे
चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े
🙂 🙂 🙂