તૂટી કલમ તો આગળીનાં ટેરવે લખ્યું,
તેથી જ રાતી ઝાંય છે મારા બયાનમા.
ભગવતીકુમાર શર્મા

શેર – શારિક કૈફી

“कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
जो मिरा सारे का सारा था कभी ”

-शारिक कैफ़ी

 

ક્યાં તો બધું જ આપ ઓ ખુદા ક્યાં તો આ ટુકડા પાછા લઈ જા……

4 Comments »

  1. દર માયાનક પાતેલ said,

    April 26, 2022 @ 7:06 PM

    દેવું હો તારે તો દૈ દે છપ્પર ફાડી ,
    હપ્તે હપ્તે લેવાની ટેવ નથી મારી .

  2. pragnajuvyas said,

    April 26, 2022 @ 9:50 PM

    शारिक कैफ़ीसाहेबका बहोत खुब शेरकी बहुत सुन्दर गज़ल.
    आइने का साथ प्यारा था कभी
    एक चेहरे पर गुज़ारा था कभी

    आज सब कहते हैं जिस को नाख़ुदा
    हम ने उस को पार उतारा था कभी

    ये मिरे घर की फ़ज़ा को किया हुआ
    कब यहाँ मेरा तुम्हारा था कभी

    था मगर सब कुछ न था दरिया के पार
    इस किनारे भी किनारा था कभी

    कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
    जो मिरा सारे का सारा था कभी

    आज कितने ग़म हैं रोने के लिए
    इक तिरे दुख का सहारा था कभी

    जुस्तुजू इतनी भी बे-मा’नी न थी
    मंज़िलों ने भी पुकारा था कभी

    ये नए गुमराह क्या जानें मुझे
    मैं सफ़र का इस्तिआ’रा था कभी

    इश्क़ के क़िस्से न छेड़ो दोस्तो
    मैं इसी मैदाँ में हारा था कभी
    …..
    कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
    जो मिरा सारे का सारा था कभी
    -बात पे याद आता है
    इबादत होता है, कोई तज़ुर्बा नहीं इश्क़
    मिलता बामुश्किल, दिल बहलाते क्यों हो?
    धन्यवाद तिर्थेशजी

  3. Vineschandra Chhotai 🕉 said,

    April 27, 2022 @ 6:46 AM

    ચૂકવું છે દેવું સરવે જગતનું જો ખુદા ઉધાર દે તો

  4. Suresh Vithalani said,

    April 27, 2022 @ 8:33 AM

    બહુ જ સુંદર. આભાર.

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