ઘાવ પણ એણે વધુ ઝીલવા પડે
જે હૃદય ખાસ્સું પહોળું હોય છે
નયન દેસાઈ

रात भर – ફૈઝ અહમદ ફૈઝ

आप की याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

રાતભર આપણી યાદ આવતી જ રહી….રાતભર ચાંદની દિલ દુઃખવતી રહી…

गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर

કદીક જલતી રહી કદીક બુઝતી રહી, દર્દની શમા રાતભર ટમટમતી રહી..

कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर

કોઈ ખુશ્બુ વસ્ત્રો બદલતી રહી, કોઈ તસ્વીર ગાતી રહી…..

फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर

ફૂલની ડાળીના છાંયે હવાની લહેર આખી રાત કોઈ કિસ્સો સંભળાવતી રહી….

जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात भर

જે ન આવ્યું તેને કમાડની સાંકળ દરેક અવાજે બોલાવતી રહી…

एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर

એક ઉમ્મીદથી દિલ બહેલતું રહ્યું, એક તમન્ના રાતભર સતાવતી રહી…

– ફૈઝ અહમદ ફૈઝ

છાયા ગાંગુલીને કંઠે ગવાયેલી એક મશહૂર ફિલ્મી ગઝલ – કે જેની સાથે આ ગઝલને ઘણું સામ્ય છે તેના શાયર ફૈઝસાહેબ નથી, તે ગઝલ મખદૂમ મોહીઉદ્દીનસાહેબની છે. આ ગઝલ મુકવાનો ખાસ હેતુ એ કે કોઈ શેર એવો કંઈ ખાસ નથી, ન તો અર્થનું ઊંડાણ છે. પરંતુ આ ગઝલ એક ચિત્ર સર્જે છે, એક માહોલ ઊભો કરે છે, એક મૂડ બનાવે છે અને ભાવક એક અલગ જ ભાવવિશ્વમાં પહોંચી જાય છે. જો આ ગઝલ સાંભળીએ તો આખો દિવસ આ જ ગઝલ મનમાં ગૂંજ્યા કરે અને દિલને સતાવતી રહે….આ જ ખૂબી છે આ ગઝલની અને આ જ સફળતા છે આ શાયરની….

3 Comments »

  1. pragnajuvyas said,

    February 10, 2022 @ 7:04 AM

    हमारे दौर के मशहूर नगमानिगार फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ एक बेमिसाल शायर थे. उनकी शायरी में अहसास, बदलाव, प्रेम और सुकुन सब कुछ था. साहित्य आजतक के पाठकों के लिए.
    फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म 13 फरवरी 1911 को अविभाजित हिंदुस्‍तान के शहर सियालकोट (पंजाब) में जो अब पाकिस्तान में है, एक मध्‍यवर्गीय परिवार में हुआ था। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ बाबा मलंग साहिब, लाहौर के सूफ़ी, अशफ़ाक अहमद, सयेद फ़ख़रुद्दीन बल्ली, वासिफ़ अली वासिफ़ और अन्य सूफ़ी संतों के भक्त थे। फ़ैज़ प्रतिबद्ध मार्क्सवादी थे।
    वे अंग्रेजी तथा अरबी में एम०ए० करने के बावजूद भी कवितायें उर्दू में ही लिखते थे। 1930 में फ़ैज़ ने ब्रिटिश महिला एलिस से विवाह किया था। 1942 से लेकर 1947 तक वे ब्रिटिश सेना मे कर्नल रहे। फिर फ़ौज से अलग होकर ’पाकिस्‍तान टाइम्‍स’ और ’इमरोज़’ अख़बारों के एडीटर रहे। लियाकत अली ख़ां की सरकार के तख़्तापलट की साज़िश रचने के जुर्म में वे 1951‍-1955 तक क़ैद में रहे। बाद में वे 1962 तक लाहौर में पाकिस्तान आर्टस काउंसिल में रहे। 1963 में उनको सोवियत-संघ (रूस) ने लेनिन शांति पुरस्कार प्रदान किया। 1984 में, उनके देहांत से पहले, उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिये प्रस्तावित किया गया था।
    गमन फिल्म जो कि सन 1978 में आई थी, इसका एक गीत सीने में जलन शहरयार साहब का लिखा हुआ काफी मशहूर हुआ था और एक अन्य गीत “आपकी याद आती रही रात भर” मखदूम मोइउद्दीन का लिखा हुआ है वैसे यह गीत सुनकर फैज़ अहमद फैज़ साहब की ग़ज़ल “आपकी याद आती रही रात भर” की याद आती है, दरअसल फैज़ साहब की यह ग़ज़ल “मखदूम की याद में ” नाम से प्रसिद्द है और फैज़ साहब ने उक्त ग़ज़ल के पहले शेर को लेकर यह ग़ज़ल लिखी | संयोग की बात देखिये यह फिल्म 1978 में आई थी और फैज़ साहब ने यह ग़ज़ल भी 1978 में ही मास्को में लिखी थी | लीजिए ये दोनों गज़ले पेश है जिसमे पहली ग़ज़ल मखदूम साहब की जो कि गमन फिल्म में ली गयी है और दूसरी फैज़ साहब की ग़ज़ल है :
    आपकी याद आती रही रात भर,
    चश्मे-नाम मुस्कुराती रही रात भर |

    रात भर दर्द की शम्मा जलती रही,
    गम की लौ थरथराती रही रात भर |

    बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा,
    याद बन-बन के आती रही रात भर |

    याद की चाँद दिल में उतरती रही,
    चाँदनी जगमगाती रही रात भर |

    कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा,
    कोई आवाज़ आती रही रात भर |- मखदूम मोइउद्दीन
    ————————-
    पुरूषोत्तम अब्बी
    आपकी याद आती रही रात भर
    नींद नखरे दिखाती रही रात भर

    अक्स दीपक का दरिया में पड़ता रहा
    रौशनी झिलमिलाती रही रात भर

    चाँद उतरा हो आँगन में जैसे मेरे
    शब निगाहों को भाती रही रात भर

    मैने तुझको भुलया तो दिल से मगर
    याद सीना जलाती रही रात भर

    वो मिला ही कहां और चला भी गया
    बस हवा दर हिलाती रही रात भर
    ———————————–
    मखदूम की याद में – 1
    इसी तर्ज़ पर फैज़ साहब की ग़ज़ल

    कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
    कोई तस्वीर गाती रही रात-भर

    फिर सबा साय-ए-शाख़े-गुल के तले
    कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर

    जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर
    हर सदा पर बुलाती रही रात-भर

    एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
    इक तमन्ना सताती रही रात-भर – फैज़ अहमद फैज़

    आपकी याद आती रही रात-भर
    चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर

    गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
    शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात-भर

  2. lata hirani said,

    February 11, 2022 @ 10:47 PM

    ગજ્હલ મનમા ગુન્જ્યા જ કરે એ કમાલ અહે સન્ગેીત અને ગાયકેીનો છે.

  3. જયેન્દ્ર ઠાકર said,

    February 13, 2022 @ 12:19 AM

    દિલનો ખાલીપો જગતની કોય પણ ખાય કરતાં વધુ ઉંડો છે! એટલે જીવ એમાં અટકી જાય છે અને ઘુંટાયા કરે છે….આ ગઝલની જેમ.

    On a separate note I would like to appreciate the inputs from Tirtheshbhai(here), from Vivekbhai on many of his posts and also from Pragnaju Vyas from time to time to enrich our understanding and the enjoyment. Love you all.

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