चराग-ए-दैर – आदित्य जामनगरी
લયસ્તરોના આંગણે આજે આદિત્ય જામનગરીના પ્રથમ ગઝલસંગ્રહ ‘ચરાગ-એ-દૈર’નું સહૃદય સ્વાગત છે. જામનગરમાં રહેતા આ ગુજરાતી કવિ માતૃભાષાના બદલે રાષ્ટ્રભાષામાં ખેડાણ કરે છે, પણ જુઓ તો! કેવા અદભુત અને બિલકુલ મૌલિક શેર એમની કલમમાંથી સરે છે! આખી ગઝલોનો આસ્વાદ ફરી ક્યારેક કરીશું પણ આજે મને ગમેલા થોડા ચૂંટેલા શેર માણીએ…
साँस दो पल ठहर नहीं सकती
दर्द इतने ज़िगर में रहते हैं
मैं गज़ल का हमज़बाँ हुँ
इसलिए कम बोलता हुँ
बिगड जाते हैं नीचे आने पर क्यूँ
सुना है रिश्तें बनतें हैं फ़लक पर
मैं गलत रास्ते पे हूँ ये बात पक्की है,
कोई मेरी राह में पत्थर नहीं रखता
ख़त्म कब होगा खेल मजहब का,
आदमी जाने कब बडा होगा
शोहरत जब बुलन्दियों पर हो
हर फ़साना ख़िताब होता है
अब जताते भी नहीं नाराज़गी
सोचिए हम किस क़दर नाराज़ है
मेरी हिजरत समझ न पाओगे
मेरा घर मेरे घर से दूर है
लगता है नाकामी में हर शख़्स को
हर इशारा, तंज़ उसकी और है
रखते हैं बेईमानी का रोज़ा जो रोज़
उनकी पूरी ज़िन्दगी रमज़ान है
अपनी आदत से बर नहीं आता
वक़्त क्यूँ वक़्त पर नहीं आता
कम पडा है अपने लडने का जुनूँ
मत कहो कि ख़्वाब सच्चा न हुआ
कहो उसके सिवा यादों का मतलब और क्या होगा
हज़ारों मोड पर दिल वक़्त को ठहरा समझता है
मुद्धतों से उम्मीदें हडताल पर हैं
हो गए हैं बन्द दिल में बनने आँसू
रहना होगा अंधेरे में अब तो
अपने साए से दुश्मनी की है
तू नहीं मौजूद यह दिखला रही है
यह अंधेरे से काली रोशनी है
मेरी तनहाई कितनी पागल है
अब भी तेरे खयाल करती है
करिश्मा यह नहीं हर रास्ता फूलो भरा है शहर में
करिश्मा यह है – नंगे पाँव चलने की इजाजत ही नहीं
कितना महँगा सफर है दुनिया का
खर्च होती है जिन्दगी सारी
मेरी मंजिल है तू ये सच है मगर
हमसफर बनती नहीं मजिल कभी
हूँ अकेला मगर तू याद नहीं
सच कहूँ? यह भी बेवफाई है
कितनी नाजुक है जमापूंजी हमारी देखिए
एक लम्हा है जिसे हमने गुजारा ही नहीं
हर खुशी पर जवान होते है
दिल मे जो भी मलाल होते है
था मुलजिम गहनों की दुकान में
बेटी को कुछ दे न पाया ब्याह में
सुबह के खौफ से में सोता हूँ
अपने कमरे में रोशनी करके
जिन्दगी मुझसे क्या छिनेगी अब
अब तो खोने को जिन्दगी ही है
फ़र्क है सिर्फ़ मौका मिलने में
तेरी और मेरी बेवफाई में
जिन्दगी माना की होली जैसी है
पर तुम्हारी याद भी प्रहलाद है
– आदित्य जामनगरी
Kajal kanjiya said,
August 26, 2021 @ 1:49 AM
વાહહહ વાહ વાહ
Ketan Karia said,
August 26, 2021 @ 1:55 AM
Adbhut
કિશોર બારોટ said,
August 26, 2021 @ 2:00 AM
દરેક શૅર સવા શેર 👌
Parbatkumar said,
August 26, 2021 @ 2:04 AM
વાહ
વાહ ને વાહ
મજા આવી ગઈ
DILIPKUMAR CHAVDA said,
August 26, 2021 @ 2:17 AM
बहुत बढ़िया सर
Aasifkhan said,
August 26, 2021 @ 4:38 AM
વાહ
આખો સઁગ્રહ માણવા જેવો
Niraj Mehta said,
August 26, 2021 @ 5:03 AM
આ પુસ્તક અને આ સાથે આવેલા અન્ય બે પુસ્તક બધું જ ખૂબ જ સરસ અને વાંચવાયોગ્ય. ત્રણે પુસ્તકોની થીમ અલગ હોવા છતાં દરેકમાં નાવીન્યસભર અને તાજગીપૂર્ણ રચનાઓ. કવિની કલમને સલામ. અને ચીવટપૂર્વક સંગ્રહ માંથી પસાર થઈને નવનીત દોહન કરી આપવા બદલ વિવેકભાઈને પણ સલામ
Rasik bhai said,
August 26, 2021 @ 5:16 AM
બહુત ખુબ . આદિત્ય લગે રહો ્
Aditya jamnagri said,
August 26, 2021 @ 7:55 AM
Thnks vivekbhai & all
pragnajuvyas said,
August 26, 2021 @ 9:26 AM
बहुत ही बढ़िया
GAURAV PANDYA said,
August 26, 2021 @ 5:01 PM
અદ્ભુત…
Rasik juthani. Canada. said,
August 26, 2021 @ 6:14 PM
Lajawab.saral .
ડૉ.મહેશ રાવલ said,
August 26, 2021 @ 7:42 PM
મિત્ર કવિશ્રી આદિત્ય જામનગરીની કલમનો કસબ,અત્યંત
નાજુક મીનાકારી જેવો છે. બધા જ શેર એમની આગવી ઓળખને અનુરૂપ,એક ઊંચાઇ લઇને આવ્યા છે.
કવિશ્રીને ગઝલપૂર્વક અભિનંદન…💐
@આભાર,ડૉ.વિવેકભાઇ💐- આભાર,લયસ્તરો💐
લલિત ત્રિવેદી said,
August 27, 2021 @ 11:18 AM
વાહ વાહ
સ્વાગત