તું શ્વાસ થઈને મારી ભીતર શબ્દને અડી,
કાવ્યોને મારા જાણે પવન-પાવડી મળી.
વિવેક મનહર ટેલર

मैं ज़ख्म गिन रहा हूँ…- ख़लील धनतेजवी

अब के बरस भी किस्से बनेंगे कमाल के,
पिछला बरस गया है कलेजा निकाल के।

अपनी तरफ से सबकी दलीलों को टाल के,
मनवा ले अपनी बात को सिक्का उछाल के।

ये ख़त किसी को खून के आँसू रुलाएगा,
कागज़ पे रख दिया है कलेजा निकाल के।

माना कि ज़िन्दगी से बहुत प्यार है मगर,
कब तक रखोगे काँच का बर्तन संभाल के।

ऐ मीर-ए-कारवाँ मुझे मुड़ कर ना देख तू,
मैं आ रहा हूँ पाँव से काँटे निकाल के।

तुमको नया ये साल मुबारक हो दोस्तों,
मैं ज़ख्म गिन रहा हूँ अभी पिछले साल के।

– ख़लील धनतेजवी

ખલીલસાહેબ ઉર્દુમાં પણ ગઝલ કહેતા…..તેઓની એક ગઝલને જગજીતજીએ કંઠ પણ આપ્યો હતો….આ એક તેઓની જાણીતી રચના….

3 Comments »

  1. pragnajuvyas said,

    April 7, 2021 @ 8:19 AM

    अब के बरस भी किस्से बनेंगे कमाल के,
    पिछला बरस गया है कलेजा निकाल के।
    जगजीत सिंह की आवाज में यह गजल—-
    बहुत खूब
    आज की राजनीतिक गतिविधियों को परिलक्षित करने के लिए काफी है। पिछला बरस तो सचमुच महंगाई से आम जनता का कलेजा निकाल बाहर रख दिया, एक दूरदर्शी इशारा इंगित करता है कि राजनीति का विज्ञान नहीं सीख पाए हैं। हल्कापन है। भाषाओं और कदमों पर नियंत्रण नहीं है।

  2. Harihar Shukla said,

    April 12, 2021 @ 7:23 AM

    कागज़ पे कलेजा 👌

  3. Poonam said,

    April 12, 2021 @ 11:14 AM

    अपनी तरफ से सबकी दलीलों को टाल के,
    मनवा ले अपनी बात को सिक्का उछाल के।
    – ख़लील धनतेजवी – Je baat !

    Puri ghazal lajavab…

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