कैसे कह दूँ….- शकील बदायुनी
कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है
आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी [ लिल्लाह = ભગવાનને ખાતર ]
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है
छुप के रोता हूँ तिरी याद में दुनिया भर से
कब मिरी आँख से बरसात नहीं होती है
हाल-ए-दिल पूछने वाले तिरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है
जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कि कैसे हो ‘शकील’
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है
– शकील बदायुनी
મત્લાએ મને ઘાયલ કરી દીધો… શું વાત કીધી છે !!! દિલ ઉઠી જાય પછી શું મળવું અને શું ન મળવું…..!!
ગાલિબ યાદ આવે –
जब तवक़्क़ो ही उठ गई ‘ग़ालिब’
क्यूँ किसी का गिला करे कोई
pragnajuvyas said,
November 3, 2020 @ 11:40 AM
जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई
अफलातून
हर किसी की ज़िंदगी में मुलाकातें आम होती हैं. कब, कौन सी राह में कौन मिल जाए, किससे मुलाकात हो जाए, किसी को नहीं पता. कभी कभी ये मुलाकातें बहुत ख़ूबसूरत होती हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ कुछ मुलाकातें आपको परेशान कर देती हैं. मोहब्बत में जो मुलाक़ातें होती हैं उसकी महक बहुत देर तक रहती है. शायर अक्सर इस लम्हें को समेटने की कोशिश करता है. आज हम आपके लिए लाए हैं वो शेर जो मुलाक़ात के इंतिज़ार में रहने और मुलाक़ात के वक़्त महबूब के धोका दे जाने जैसी सूरतों से आपको मिलवाएगा.
याद आयी मुलाक़ात पर बेहतरीन शायरी
१.मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
बशीर बद्र
२ क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
वो तो मिलने को मुलाक़ात समझता ही नहीं
फ़ातिमा हसन
3.गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है ‘अमीर’
क़द्र खो देता है हर रोज़ का आना जाना
अमीर मीनाई
४ मिल रही हो बड़े तपाक के साथ मुझ को यकसर भुला चुकी हो क्या
जौन एलिया
५आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम
जाँ निसार अख़्तर
६.ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है
हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है
लाला माधव राम जौहर
७.हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
कितने प्यारे हैं मुझे छोड़ के जाने वाले
विपुल कुमार
८.ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है
बात होती है मगर बात नहीं होती है
हफ़ीज़ जालंधरी
९.जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
तब उस को पहली मुलाक़ात का ख़याल आया
शहज़ाद अहमद
१०.बाज़ औक़ात किसी और के मिलने से ‘अदम’
अपनी हस्ती से मुलाक़ात भी हो जाती है
अब्दुल हमीद अदम
११.काफ़ी नहीं ख़ुतूत किसी बात के लिए
तशरीफ़ लाइएगा मुलाक़ात के लिए
अनवर शऊर
१२.ज़िंदगी के वो किसी मोड़ पे गाहे गाहे
मिल तो जाते हैं मुलाक़ात कहाँ होती है
अहमद राही
………..
धन्यवाद डॉ तीर्थेशजी