मुझे पुकार लो – हरिवंशराय बच्चन
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता,
कहाँ मनुष्य है कि जो उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी विरह-घिरी विभावरी, [विभावरी – તારાઓભરી રાત્રી]
कहाँ मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो!
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
उजाड़ से लगा चुका उमीद मैं बहार की,
निदाघ से उमीद की बसंत के बयार की, [निदाघ – તીવ્ર ગરમી, बयार – શીતળ પવન]
मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका उमीद मै तुषार की,
कहाँ मनुष्य है जिसे न भूल शूल-सी गड़ी
इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार लो!
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!
– हरिवंशराय बच्चन
અનાયાસે ફેસબુક પર કોઈ દીકરીને આ કાવ્યનો સુંદર પાઠ કરતી સાંભળી… સરસ કવિતા વાંચવા મળી ગઈ.
બચ્ચનજીની રસાળ લયબદ્ધ પ્રવાહી ભાષા તો મનોરમ્ય હોય જ છે, પણ કાવ્ય મર્મસ્પર્શી છે….
માણસ આશા ત્યાગતો નથી. આશા માણસને સંઘરતી નથી. સંબંધ જેટલો મજબૂત, તેટલું જ દારૂણ તે તૂટવાનું દુઃખ… સંવેદનશીલ હૃદયનું ગંતવ્ય જ છે ઘાયલ થવું…..
pragnajuvyas said,
April 6, 2020 @ 12:34 PM
वाह अनुपम अद्भुत ।
बच्चन की कविता ने उस तरह की तमाम गाँठों को खोला और जीवन के सौंदर्य का बोध कराया. इंसान एक बार जब अपनी सही राह पकड़ कर चलना सीख ले तो जीवन में आए प्रीति, प्रेम, छल, कपट, विश्वास, विश्वासघात सब कुछ को समझने, सहने और जीतने की शक्ति स्वतः ही मिलती चलती है.बच्चन की कविता ने यही शक्ति दी. बच्चन के पाठक ने अनजाने में ही अपने सुख में, अपने दुख में उनकी कविताएँ गुनगुना कर आनंद और सहारा पाया.
Harshad said,
April 9, 2020 @ 8:44 PM
WOW !! No words for Harivanshrai !!
Dinesh shah said,
April 13, 2020 @ 9:45 PM
Nice feel fantastic!
Dr Heena Mehta said,
April 19, 2020 @ 5:17 AM
After reading during school days, so excited to read
Harivansh Rai Bachchan poem!!
Thanks for sharing