તમે દિલમાં અને અ મૂર્ખ આંખો છે પ્રતીક્ષામાં,
ગયું કોઈ નથી ને થાય છે પાછું ફરે કોઈ.
ગની દહીંવાલા

व्यवस्था की मशीन -‘धूमिल’

मैं रोज देखता हूँ कि व्यवस्था की मशीन का
एक पुर्जा़ गरम होकर
अलग छिटक गया है और
ठण्डा होते ही
फिर कुर्सी से चिपक गया है
उसमें न हया है
न दया है
नहीं-अपना कोई हमदर्द
यहाँ नहीं है। मैंने एक-एक को
परख लिया है।
मैंने हरेक को आवाज़ दी है
हरेक का दरवाजा खटखटाया है
मगर बेकार…मैंने जिसकी पूँछ
उठायी है उसको मादा
पाया है।
वे सब के सब तिजोरियों के
दुभाषिये हैं।
वे वकील हैं। वैज्ञानिक हैं।
अध्यापक हैं। नेता हैं। दार्शनिक
हैं । लेखक हैं। कवि हैं। कलाकार हैं।
यानी कि-
कानून की भाषा बोलता हुआ
अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।

-‘धूमिल’

ઘણા વર્ષો પહેલાની આ કવિતા આજે પણ કેટલી પ્રાસંગિક છે !!!!!

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