मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी – हरिवंश राय बच्चन [source – ઓશો – અથાતો ભક્તિ જીજ્ઞાસા]
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी,
प्रिय तुम आते तब क्या होता?
मौन रात इस भांति कि जैसे, कोई गत वीणा पर बज कर,
अभी-अभी सोई खोई-सी, सपनों में तारों पर सिर धर
और दिशाओं से प्रतिध्वनियाँ, जाग्रत सुधियों-सी आती हैं,
कान तुम्हारे तान कहीं से यदि सुन पाते, तब क्या होता?
तुमने कब दी बात रात के सूने में तुम आने वाले,
पर ऐसे ही वक्त प्राण मन, मेरे हो उठते मतवाले,
साँसें घूमघूम फिरफिर से, असमंजस के क्षण गिनती हैं,
मिलने की घड़ियाँ तुम निश्चित, यदि कर जाते तब क्या होता?
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी,
प्रिय तुम आते तब क्या होता?
उत्सुकता की अकुलाहट में, मैंने पलक पाँवड़े डाले,
अम्बर तो मशहूर कि सब दिन, रहता अपने होश सम्हाले,
तारों की महफिल ने अपनी आँख बिछा दी किस आशा से,
मेरे मौन कुटी को आते तुम दिख जाते तब क्या होता?
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी,
प्रिय तुम आते तब क्या होता?
बैठ कल्पना करता हूँ, पगचाप तुम्हारी मग से आती,
रगरग में चेतनता घुलकर, आँसू के कणसी झर जाती,
नमक डलीसा गल अपनापन, सागर में घुलमिलसा जाता,
अपनी बाँहों में भरकर प्रिय, कण्ठ लगाते तब क्या होता?
मधुर प्रतीक्षा ही जब इतनी,
प्रिय तुम आते तब क्या होता?
- हरिवंश राय बच्चन
[source – ઓશો – અથાતો ભક્તિ જીજ્ઞાસા]
પ્રતીક્ષાનું અત્યંત મધુર ચિત્રણ ! નખશિખ પ્રેમમાર્ગ……
munira ami said,
September 20, 2015 @ 1:30 AM
વાહ્!!!!!
Harshad said,
September 20, 2015 @ 7:00 AM
Awesome creation.
KETAN YAJNIK said,
September 20, 2015 @ 7:08 AM
માધવ ક્યાંય નથી મધુવનમાં ……..
Sharad Shah said,
September 20, 2015 @ 11:54 AM
भक्तके पास केवळ हृद्य है, जो प्रति पळ उस प्रितम प्यारेकी यादमें तडपता है. एक मिठी चुभन है, एक मीठा दर्द है, प्रेमसे लबालब भरे हृद्य के साथ. परमात्माकी भक्त प्रतीक्षा करता है. एक और् आंखसे अश्रुकी धारा बह रही है. एक और पुकार उठ रही है. ऐसे क्षण में मीरां कहेगी,” एरी मैं तो प्रेम दिवानी मेरो दर्द न जाने कोय.” बस ऐसी ही भाव दशासे उठी यह कविता है. वह प्रतीक्षाका दर्द ईतना मीठा है तो वह परम प्यारा जब सामने होगा तब क्या होगा? घायलकी गत घायल जाने.
M.D.Gandhi, U.S.A. said,
September 20, 2015 @ 2:55 PM
બહુ સારી કવિતા છે.
Maharashtra Naik(Canada) said,
September 20, 2015 @ 9:06 PM
સરસ…….