बझम-ए-उर्दू : 02: अब के हम बिछड़े तो – अहमद फ़राज़
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों में मिलें
तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इंसाँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
आज हम दार पे खेंचे गये जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माज़ी है “फ़राज़”
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
– अहमद फ़राज़
આજનો અવસર ખાસ છે તો આસ્વાદ પણ ખાસ રીતે. આજે વાંચવાને બદલે સાંભળો આસ્વાદ!
મેંહદી હસનના અવાજમાં ગઝલઃ
આ પણ એમનો જ અવાજ છે પણ આ છે ફિલ્મી વર્ઝનઃ
ख़राबों = શરાબખાનુ, हिजाबों = પડદાઓ, ग़म-ए-दुनिया = દુનિયાદારીનુ દુઃખ, ग़म-ए-यार = પ્રેમનું દુઃખ, दार = (ફાંસીએ ચડાવવાની) શૂળી, निसाबों = પાઠ્યક્રમ, સિલેબસ, माज़ी = ભૂતકાળ, सराबों = ઝાંઝવા.
munira ami said,
December 6, 2014 @ 2:50 AM
સુબહાનલ્લાહ !!!!!
SHAIKH Fahmida said,
December 6, 2014 @ 3:12 AM
Excellent .
Ranjees hi sahi dil hi dukhane ke liye aa
Aa phir se mujhe chod jaane ke liye aa.
pragnaju said,
December 6, 2014 @ 9:43 AM
વાહ્
Akbarali Narsi usa said,
December 6, 2014 @ 1:34 PM
ખુબ ખુબ અભિનંદન
એક નવી શરૂઆત કરવામાટે
Sudhir Patel said,
December 6, 2014 @ 10:57 PM
સુંદર ગઝલ-પસંદગી અને એની આગવી રજૂઆત માટે ધવલભાઈને અભિનંદન!
વિવેક said,
December 11, 2014 @ 8:31 AM
eternal poetry…
nehal said,
December 12, 2014 @ 4:31 AM
Waah..
Jayesh Rajvir said,
December 12, 2014 @ 6:23 AM
હવહ્ ઘન સમય પચ્હિ અaaવિ સરસ ગઝલ સમ્ભ્લિ.
Jayesh Rajvir said,
December 12, 2014 @ 6:24 AM
Wah. Must gazal. Ghana samaye