ક્યાંથી હવાય પામી શકે પાર શબ્દનો
પ્હોળો છે આભ જેટલો વિસ્તાર શબ્દનો

વર્ષોથી હૈયું ઝંખતું અજવાળું મૌનનું
ઘેરી વળ્યો છે આંખને અંધાર શબ્દનો
મનોજ ખંડેરિયા

લયસ્તરો બ્લોગનું આ નવું સ્વરૂપ છે. આ બ્લોગને  વધારે સારી રીતે માણી શકો એ માટે આ નિર્દેશિકા જોઈ જવાનું ચૂકશો નહીં.

Archive for સિરાઝ ફૈઝલ ખાન

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समझौता – सिराज फ़ैसल ख़ान

बहुत पुरानी कोई उदासी
बदन खंडर में पड़ी हुई है
ज़हन के ताक़ों में कितनी यादों की अब भी कालिख जमी हुई है

है दर्द कोई रगों में बहता ख़मोश जैसे

हैं अश्क़ कुछ जो तलाशते हैं
बहाने आँखों से झाँकने के

हैं ज़ख़्म कुछ बे-क़रार रहते हैं जैसे खुलने को हर घड़ी ये

कमाल ये है
सजा के इक
झूटी मुस्कुराहट
मैं हर अज़ीयत दबा गया हूँ
सभी को लगता है ठीक है सब
नए मरासिम बना के ख़ुश हूँ…..

कहाँ मैं जाऊं
कि सारी चीज़ों से,
हर जगह से तो उसकी यादें जुड़ी हुई हैं
ये बेड़ियां तो हमारे पैरों में जाने कब से पड़ी हुई हैं

वो बाद मुद्दत के अब भी इतना भरा है मुझमें
बग़ैर उसके तो इस शहर का
हर एक रस्ता
तमाम गलियाँ
बज़ार कैफ़े
नज़र में जैसे
सुई की मानिंद चुभ रहे हैं…

वही थियेटर है
कार्नर की वही दो सीटें,
है फ़िल्म पर्दे पे कॉमेडी इक,
सभी तमाशाई एक लय में
ख़ुशी में डूबे हुए ठहाके लगा रहे हैं,
जगह पे उसकी
हमारे पहलू में शख़्स बैठा हुआ है कोई
हमारे काँधे पे उसका सर है
हम अपने अंदर सिसक रहे हैं…………!!

-सिराज फ़ैसल ख़ान

નઝ્મના શીર્ષકમાં જ અર્થ અભિપ્રેત છે…..

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