રાજકારણ વિશેષ : ૦૯ : किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है – राहत इंदौरी
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में ( जद = नुकसान )
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है ( सदाकत = सच्चाई )
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे ( साहिबे मसनद = તખ્તનશિન )
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
– राहत इंदौरी
રાજનૈતિક કાવ્યની વાત હોય અને રાહતસાહેબ ન હોય એવું બને !!!!
છેલ્લો શેર તો એટલો મજબૂત છે કે જ્ર્યાં સુધી ભારત દેશ છે ત્યાં સુધી ભૂલાશે નહી…. નક્કર સત્યની બળકટ અભિવ્યક્તિ.
pragnajuvyas said,
December 14, 2022 @ 12:02 AM
मरहूम शायर राहत इंदौरी की यह ग़ज़ल उनके द्वारा पढ़ी गई सबसे लोकप्रिय ग़ज़लों में एक है.
हिंदुस्तान पर सबके हक़ की बात करने वाली यह ग़ज़ल आज भी प्रासंगिक है.
Sapana said,
December 14, 2022 @ 12:20 AM
जब भी मुसलमान को निकालनेकी बात आएगी !!
बात निकली तो दूर तक जाएगी !!
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
વિવેક said,
December 14, 2022 @ 6:14 PM
મજબૂત ગઝલ…
બધા જ શેર નખશિખ શેરિયતભર્યા છે… ‘કિસી કે બાપ કા હિન્દુસ્તાન’વાળો શેર વધુ લોકપ્રિય થયો છે એ ખરું, પણ કવિતાની રીતે જોવા જઈએ તો ‘જુબાન’ અને ‘જાતી મકાન’ – આ બે શેર હાંસિલે-ગઝલ કહી શકાય.