इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ – અહમદ ફરાઝ
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
तू कि यकता था बे-शुमार हुआ
हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ
તું અદ્વિતીયમાંથી સામાન્ય થઈ ગયો, હું પણ તૂટીશ તો ઠેરઠેર ફેલાઈ જઈશ
हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ
હું કોઈ મજબૂરીનું બહાનું કાઢું, ક્યાંક ફરીથી બીજે કશેક વધુ ફસાઈ ન પડું
हम अगर मंज़िलें न बन पाए
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ
देर से सोच में हैं परवाने
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ
इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ
પ્રેમ પણ નસીબનો ખેલ છે, ખાખ પણ થઈ જવાય, પારસમણિ પણ થઈ જવાય…
अब के गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ [ क़बा = વસ્ત્ર ]
बंदगी हम ने छोड़ दी है ‘फ़राज़’
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
– અહમદ ફરાઝ
મક્તો મશહૂર છે, આખી ગઝલ સૉલિડ છે. એકસૂત્રી ગઝલ નથી, પણ પ્રત્યેક ભાવ મજબૂતીથી અભિવ્યક્ત થયો છે.
પહેલા ચાર શેર ક્રૂર અનુભૂતિજન્ય નારાજગીનું બયાન છે અને પછી બધા શેર છૂટક અર્થ ધરાવે છે. એક ઘેરી લાગણી જન્માવતી આ ગઝલ વચ્ચે ભાવ બદલે છે અને મકતાએ ફરી મૂળ ભાવ પકડે છે તે થોડું કઠે છે પણ એને બાદ કરતા તમામ શેર કાબિલેતારીફ છે….
pragnajuvyas said,
March 1, 2021 @ 12:01 PM
तरक्की पसंद शायरी के दौर में जिस एक शायर ने मूल लहजे को बजिद नहीं छोड़ा और तमाम उम्र ग़ज़ल की नाज़ुक मिज़ाजी से मुतासिर रहा, अहमद फ़राज़ शायरी में उसी शख़्सियत का नाम है। फ़ैज़ के गम-ए- दौरां अपने गम-ए-जानां की एक अलहद और पुरकशिश दुनिया बनाकर फ़राज़ ने उर्दू शायरी को एक बहुत नर्म और नाज़ुक अहसास अता
उर्दू अदब की मक़बूल हस्तियों में शुमार मशहूर शायर अहमद फ़राज़ की बेहतरीन गजल
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
चुनिंदा शे’र
दिल को छू लेने वाली नज़्म